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3 Sep 2021 · 1 min read

कविता

कविता
पहले नमन मैं कर रहा हूँ
सिर्फ़ निज माँ- बाप को |
फिर इस धरा को और हे
भाई बहन सब आपको ||

कविता सुनाने जा रहा हूँ,
धर्म की , ईमान की |
जिससे यहाँ कायम रहे ,
इंसानियत इंसान की ||

हमको मिली है चार दिन की
ज़िंदगी संसार में |
जिसको लगानी है हमें ,
इंसानियत , में प्यार में ||

अरबों हडपकर जो मरे,
उनके मिटे पहचान हैं|
खरबो कुचल कर चल दिए ,
जो बुद्ध , वे भगवान हैं||

जो चाहता है जगत में ,
कुछ खास निज पहचान हो |
अवधू निवेदन है कि वह,
इस समय से इंसान हो ||

अवध किशोर अवधू
ग्राम -बरवाँ (रकबा राजा)
पोस्ट- लक्षमीपुर बाबू
जिला-कुशीनगर (उत्तर प्रदेश )
मो.न.9918854285

Language: Hindi
352 Views
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