कविता
कविता-
कविता तुम जब भी मुस्कुराती हो,
मन को बहुत लुभाती हो
पंक्तियों संग खेलकर तुम,
अर्थ नया बनाती हो।
मनोभावों को शब्दों में बयां कर,
संदेश कई दे जाती हो
तुम आशा हो नई उड़ान की
सरल हो, इसलिए हृदय का स्पर्श पाती हो।
बिन सजावट के भी तुम सुंदर हो,
फिर भी चाहता हूं कि तुम्हें अलंकारों से,
नए रूपकों से, हृदय से उभरती तरंगों से
सुसज्जित करूं, सजाऊं।
कविता तुम जीवन में इन्द्र धनुष की तरह रंग भर जाती हो
बरखा की फुहार की तरह चंचल हो,
बहती नदिया की तरह भावुक हो,
तुम प्रेम हो, हर कवि हृदय की संवेदना हो।
बचपन से ही तुम साथ मेरा निभाती हो,
हर मंच को पुरस्कृत कर जाती हो,
तुम दृष्टि हो, सम्मान हो
तुम ज्ञान हो, तुम आस हो।
सांझ की मधुर बेला में, जब पक्षी कलरव करते हैं
तुम स्वत: ही आती हो,
कवि हृदय को प्रेरित कर
कल्पना को नया रंग दे जाती हो।