कविता
तुम बिन न जाने क्यूँ घिरा हूँ,
मैं अपने इन अहसासों में हूँ।
तुम बिन कुछ ताल्लुक़ नहीं हैं,
बस जो भी हैं यहीं जीवन है।
बिन तुम्हारे न जाने कितने हैं,
हैं जो भी बस वो पल तुमसे हैं।
किया नहीं कुछ सहा नहीं हैं,
हमने तुम्हें बस सिर्फ पाया हैं।
सुना था उस सहजा से मैंने,
तड़प थी इक वसीयत से हमें,
अर्ज नहीं किया कभी तुम्हें,
बस सहा रहा उस दिन में..,
भीगें पलकों की नयन से,
मेरे नैन शब्द नहीं क्या बताऊँ।
इक कल्पना कर रहा था में,
उस दिन भी इंतज़ार तेरा में.।
न कोई फोन आया तेरा,
न कोई जवाब आया तेरा,
बस सारा दिन सोचता रहा।
क्यूँ बन गया तेरा भाई में..,
न कभी जाना तूने,
न कभी जाना मैंने,
बस इक फर्जी से जब,
तुम्हें फोन आया था।
रोता रहा पूरी रात में,
सोचता रहा उस रात में,
किसने तुझें फोन किया,
क्यूँ तुझें उसने फोन किया।
नहीं बताया तूने कुछ,
बस सिर्फ बोला जाओ,
हां अब नहीं बात करूंगा।
हां अब नहीं रिश्ता रखूंगा।
सारी रात सोचा फिर आज,
लिखा मैंने आख़री मैसेज था।
मैंने किसी को भी नम्बर तेरा,
नहीं दिया यहीं मैंने तुझें लिखा हैं.!!
हार्दिक महाजन