कविता
हर शाम घर लौटकर
आयने में देखकर हमें ही शर्म आने लगें,
अपनी आँखों से आँखें मिला न पाएं…..
ऐसा क्यूं जियें हम?
सूर्य बदल रहा है…
आओ, हम भी बदलें अपने आप को !
इंसान हैं हम !
*
|| पंकज त्रिवेदी |
हर शाम घर लौटकर
आयने में देखकर हमें ही शर्म आने लगें,
अपनी आँखों से आँखें मिला न पाएं…..
ऐसा क्यूं जियें हम?
सूर्य बदल रहा है…
आओ, हम भी बदलें अपने आप को !
इंसान हैं हम !
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|| पंकज त्रिवेदी |