~कविता~
~ कविता~
मेरे मन की नायिका
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देखा तुम्हे, नज़र फिर कहाँ हटने वाली
वही नज़ाकत, वही अदा, इठलाने वाली
बिन तारों के छेड़ती है, ग़ज़ल मतवाली
अपलक सौंदर्य की मेनका, स्वर्ग वाली
मुखड़ा छुपाती, लट बलखाती घुंघराली
उमड़ती घुमड़ती बदली हो, काली काली
कहती है तेरे गालो की ये, सुर्ख सी लाली
बस अब नई सुबह है, जैसे होने ही वाली
कपकपाते अधर, होले से कुछ कहने वाली
हे कली अब कमल की, कोई खिलने वाली
ठुमकी चाल,बलखाती आँचल लहराने वाली
यूँ लगे, लदी फूलों की हो कोई नाज़ुक डाली
नयन कटीले कमान, तीखे तीखे बाणों वाली
सुध बुध खो, घायल कर, मन को हरने वाली
नाज़ुक कलाई है, अब तब लचकने ही वाली
थाम लूँ बांह तेरी मैं, अब मन ललचाने वाली
नख शिख भाव विभाव, मूरत सुंदरता वाली
दिखती ये तो वही कल्पना,मेरी कविता वाली
कैसे काबू करें कवि, मन अब तो हरने वाली
मेरे मन की नायिका, अब मुझे मिलने वाली
डॉ.किरण पांचाल ‘अंकनी ‘