कविता
अलसाई सी लगती हो, शरमाई सी लगती हो
बाल रवि की किरणों से, कुम्हलाई सी लगती हो
सुंदर छंदों सी रचना हो, गजल हो, रूबाई हो
मृगतृष्णा ,सम्मोहन बन कर हिय में मेरे समाई हो
तुम सुग्रीवा, तुम मृगनयनी, तुम मृदु मनोहर बाला
उषा सुंदरी, स्वर्ण सुंदरी, तुम स्वयं मधुशाला