(कविता) !!अहसास !!
वो जो हमने तुमने
मिलकर बोयी थी
अपनी जिंदगीं
उसका अहसास
आज भी जिंदा है
जब तुमने मुझे छुआ
कांप उठे थे तुम भी
खिल उठे थे
हमारे गुनगुनाते अरमान
मैं आज भी वहीं हूं
तुम कहां खो गए..?
मैं आज अकेली
टटोलती रहती हूं
उस मिट्टी को
जिसमें बसी थी
तुम्हारी सोंधी खुशबू
वह खुशबू
आज भी मेरी
रुह में बसी है
बनकर मधूर अहसास
स्व लिखित डॉ.विभि रजंन (कनक)