कविता
थोडा कम थका ए जिन्दगी,
मजबूर है हम ,मजदूर नहीं।
खवाहिशें तो है बडी बडी,
पूरी सभी होती नहीं।
हसरतें सारी दबी रह गयी,
जिम्मेदारी के अँधेरे तले।
थोडा कम सता ए जिन्दगी,
किस्मत के मारे है, तुझसे हारे नहीं।
थोडा कम तडपा ऐ जिन्दगी,
अंदर सै खोखले है, पर होंसले कम नहीं।
*****सोनु सुगंध*** ३/११/२०१८