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10 Jan 2019 · 1 min read

कविता

छतों से भी मेरा पुराना याराना हैं,
वो पूरानी बातें, मीठी यादें और फसाना हैं।
वो गर्मियों मे गाँव मे दिन की धकान के बाद
हल्कि सी ठंडी लहर मै छत पर जाना।
नानी, दादी के हाथ का गरम गरम खाना,?
घंटो बैठकर बतियाना,चांद कि रोशनी को देखना,
सुबह कि पहली किरण के साथ उठना,
पडोस कि छत वाले को सोता देख कंकड मारना।
एक घर से दुसरे घर कि छत पर कुदकर जाना
वो लुकाछिपी मे छूप जाना, भागकर पकडना।
ठंडी रात मे वो भूतों कि कहानियों का डर
वो रजाइयों कि खीचातानी।
सांझ ढले छत पर घंटों भर कि बातें
वो दुसरी छत वाली को ताडना?
उतरायण से एक दिन पहले वो मांझा घिसना
मस्त अप टु डेट होकर पंतग उडाना
वो कायपो छे गूंज के शोर कि खूशी
शाम ढले इशक के पैंच लडाना??
अपनी पंतग को उसकि छत पर छोडना।
वो शादियों का जिमण एक साथ बैठकर करना
त्यौहार मे जाकर छत पर चांद का इंतजार।
यू तो कई यादें तुझसे हे मेरी छत
कई बातें ओर भी बाकी है तूझसे।
इनका सिलसिला यूंही बनाये रखना
लोगों को यूहीं मिलाएं रखना।

—-सोनू सूगंध— ०८/०९/२०१८

Language: Hindi
282 Views
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