कविता
मैं तुमसे प्यार करता हू, नहीं इन्कार करता मन इस सच्चाई से ,
क्यों सामने आता हैं केवल तुम्हारा ही अक्स
क्यों खोज लेती हैं आँखें हजारों की भीड़ मे भी तुम्हें।
क्यों मधुर लगती हैं केवल तुम्हारी ही आवाज ।
नींदों को क्यों उडा ले जाता है तुम्हारा अहसास।
बढते है क्यों कदम उसी पथ को जहाँ से होकर तुम गुजरते हो
बढते है हाथ क्यों बंधने को तुम्हारे आगोस मै।
क्यों समा जाना चाहता है मन
तुम्हारी हर श्वास मैं।
यह झूठ नहीं सच है मैं तुमसे प्यार करता हू।
सोनु सुगंध