कविता
गिरकर और सँभलकर कर पहुँचे,
मंज़िल तक हम चलकर पहुँचे,
तुम पहुँच गये अपनों से आगे,
पर अपनों को छलकर पहुंचे,
आवभगत पाने कि खातिर
तुम तो वेश बदलकर पहुँचे,
देखो सबके होठों तक हम
गीत-ग़ज़ल में ढलकर पहुँचे “
गिरकर और सँभलकर कर पहुँचे,
मंज़िल तक हम चलकर पहुँचे,
तुम पहुँच गये अपनों से आगे,
पर अपनों को छलकर पहुंचे,
आवभगत पाने कि खातिर
तुम तो वेश बदलकर पहुँचे,
देखो सबके होठों तक हम
गीत-ग़ज़ल में ढलकर पहुँचे “