कविता
“सलामे इश्क अठरा साल”
सभी ये साल सोलह हैं,सभी यादें पुरानी हैं।
गुज़र जाएँ यहाँ जो पल,कहें अपनी कहानी हैं।
सितम हर रोज़ झेले हैं,नहीं शिकवा शिकायत है।
कहूँ क्या आपसे यारों, चढ़ीं सब रुत जवानी हैं।
किए पहले कई स्वागत,कई पतझड़ यहाँ आए।
हँसाया नित बहारों ने, नये मधुमास मन भाए।
नहीं सूना हुआ जीवन,खुशी के छीन लेने से।
यहाँ हर रात मुरझा कर,सुबह नित फूल खिल आए।।
मिला जो शख़्स जीवन में,सिखाने वो नया आया।
कभी दुख ही मिला यारों, कभी सुख टूट कर पाया।
बना हम कर्म को पूजा,जिए नित शान से यारों।
बने रिश्ते यहाँ टूटे,सभी को तन्हा’ ही पाया।
सलामे इश्क अठरा साल तुमको इस ज़माने में।
बसा कर याद में अपनी कहेंगे हम फसाने में।
भला तुमसा कोई दूजा कहाँ पाऊँगा दुनिया में।
बहेंगे आँख से आँसू मिलेगा क्या रुलाने में।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर