कविता
मांग मेरी अनन्त सत्ता से
पक्षी-पवन-सी हो उडान मेरी
बन जाऊं धरती और आकाश
सूर्य से अवतरित होता
किरणों का प्रकाश
धूम आऊं हर नक्षत्र हर सितारा
कहीं न छूटे कोई किनारा
क्या तुम्हारी सत्ता को है
यह नापने या जाचने का प्रयास?
नहीं!नहीं!अन्यथा न लेना
चाहत मेरी रहूं तुम्हारे पास।