कविता
“दोस्ती”
दोस्ती दिलों में महकता
अनमोल एक रिश्ता है
मेरी दोस्त मन में बसा
प्यारा सा फरिश्ता है।
सुख में लुटाती प्यार जो
निश्छल प्रेम विश्वास है
दोस्ती का मोल नहीं कुछ
रिश्ता बड़ा ही खास है।
सखी-सहेली एक रंजना
मुझको लाड़ लड़ाती थी
गलती मेरी बिसरा कर
मुझको गले लगाती थी।
इक दाल के हम दो दाने
इक-दूजे से लगते थे
रंग-रूप में समता थी
मिलजुल कर हम रहते थे।
मेरे बिन उसकी दुनिया
फीकी अधर मुस्कान बनी
साथ में हम खेला करते
अजब निराली शान बनी।
आँख मिचौली खेल खेलना
धूम धड़ाका ब्याह रचाना
सत्ती ताली छिपना-छिपाना
लंबी टोली साथ निभाना।
वक्त रेत सा फिसल गया
किस्मत हम से रूँठ गई
आज तरसते मिलने को हम
आस हमारी छूट गई।
कोई दो संदेश मुझे
कौन देश में वो रहती
मुझे हँसाने के खातिर
सारी पीड़ा खुद सहती।
टेढ़ी-मेढ़ी राहों में
कितने मुझसे टकराए
कितना रुपया खर्च किया
पर हम दोनों न मिल पाए।
याद बहुत आती है मुझको
सखी सहेली की बातें
मेले झूले नहीं भूलते
तारे गिन गुज़री रातें।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
स्वरचित