कविता
बाल सखा चित चोर लियो तुम ढोल, मृदंग रहे मदमाए
चंदन भाल लगा इठलावत श्वेत वसन तन खूब सुहाए।
मोहनि मूरत सांवरि सूरत चंद्र सलौना रूप लुभाए
फाल्गुन मास बसे बृज धामा नटखट श्याम कथा मन भाए।
घेर लई सखियाँ सब कान्हा ग्वाल सखा मिल खूब छकाए
लाल गुलाल लगावत राधा फाल्गुन की रुत रंग खिलाए।
कूल तरंग प्रसंग सुनावत छोरि अहीर रही अकुलाए
गीत सुना मन मोह लियो तुम कोकिल बैन नहीं अब भाए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर