कविता
साथ जिन्दगी के
दर्द का इम्तिहान तो रोज देते हैं
भोर होते ताजगी मे नहा लेते हैं ।
पन्ने पलट जाते हैं रोज जिन्दगी के
जख्म छुपा कर मुस्कुरा लेते हैं ।
मुकाम ठहरने के काविल है नहीं
पाँव जिन्दगी के साथ हो लेते हैं ।
बाँटकर खुशी अपनी जमाने को
उनके गमों का मरहम लगा लेते हैं ।
फासला ना किसी से मकशद कोई
मिल गये जो नेह से नेह लगा लेते हैं ।
प्रमिला श्री