कविता
“तुम्हारी यादे”
जब तुम नही हो अब आस पास
होता क्यों हर पल तुम्हारा एहसास
रूहकी गहाईयों से उठती कोई आवाज
जाने कैसी रहती ये अनजानी तलाश
कोहरे के बीच मे कभी झिलमिलाती
दिखती छुपती कभी खलखिलाती
अक्स कोई जैसे आहट तुम्हारे होने की
छिटकी किरणों सी यादें जगमगाती ।
घेर लेती है रोज चुपके से आकर
खामोशी की मखमली एक चादर
तनहाईयों मे कुछ खोती कुछ पाती मै
वक्त की डोर पर यादों को पीरोकर
शाम सुरमयी सोख लेती आसमानी अबीर
शूल सा चुभता तुम्हारे यादों की पीर
खुद ही खुद को समझाती लेती मै
रोकर उमड़ते मचलते नैनो की नीर ।
प्रमिला श्री