कविता
“शारदे माँ!”
शारदे माँ ! पद्म आसन, श्वेतवर्णी आप हो।
ज्ञान दे #चेतन बनातीं गौरवर्णी आप हो।
हो # विलय उर में हमारे मातु वीणा वादिनी,
मोह-माया से घिरा मन तार विद्या दायिनी।
सत्य, संयम, स्नेह से # पापी हृदय उज्ज्वल करो,
मेघ सिंदूरी, विटप पुष्पित,सरित निर्मल करो।
हस्त वीणा, सिर मुकुट, गल माल पुष्पों की सजी,
शब्द मुखरित कोकिला मुख पर रवि आभा रची।
#संगिनी वीणा बनी माँ ज्योति #स्वर्णिम ज्ञान है,
सप्त- स्वर, नव- ताल दो माँ अब यही गुणगान है।
मातु #प्रमुदित आज #हर्षित कर रही जगतारिणी,
माँगती #सुंदर, सहज दो ज्ञान वीणा पाणिनी।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर