कविता
पल पल पल मैं जिया जिस पल के लिए वो पल आया एक पल के लिए। पल भर को उस पल जीना चाहा वो पल न जिया एक पल के लिए। जिस पल को अपलक देखा किया वो पल निकला पल भर के लिए। पल भर को दिल इठला सा गया वो पल भूला न पल भर के लिए। पल भर को पलट कर देखा मुझे वो पल मैं जिया हर पल के लिए। पल भर को कितना सुख दे गया वो पल ठहरा एक पल के लिए। पल भर को हँसाके ग़म दे गया वो पल न मिला एक पल के लिए। पल-पल मैं रोआ उसे याद किया वो पल जो जिया हर पल के लिए।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”