कविता
हिंदी को सम्मान दो
संस्कृत से जन्मी हिंदी ने भाषा का संसार दिया, ‘देवनागरी’ लिपि में जिसने भाषा को विस्तार दिया।
‘आगत’ शब्द समाहित करके विश्व पटल प्रतिमान दिया, शब्दकोश विकसित कर अपना बहुभाषा को मान दिया।
छंद अलंकृत रस आच्छादित रचना का आधार दिया, तुलसी ,सूर, कबीर सभी ने हिंदी को सम्मान दिया।
साहित्य सृजन कर हिंदी में हिंदी का उत्थान किया, राजभाषा बना हिंदी को संविधान ने मान दिया।
भारत में सब बोलो हिंदी, जिसके माथे पर बिंदी, हिंद की पहचान है हिंदी, देश का अभिमान हिंदी,
संस्कृत की पुत्री है हिंदी, बनी जन आधार हिंदी, एक सूत्र में बाँधे हिंदी, देव का वरदान हिंदी।
अंग्रेजी शासन चला गया आंग्ल आज भी चलती है, हिंदी रहती निर्धन बस्ती अांग्ल महल में पलती है।
अंग्रेजी का जब देखे प्रभुत्व हिंदी घर में घुटती है, राष्ट्रभाषा का स्थान पाकर भी हिंदी आहें भरती है।
भारत में “हिंदी -दिवस” मना हिंदी गाथा गाते हैं, अंग्रेजी में भाषण देकर हिंदी मान घटाते हैं।
भारत में हम हिंदीभाषी हिंदी से कतराते हैं, कार्यालय में अंग्रेजी लिख कर उसको मान दिलाते हैं।
आओ हम सब शपथ आज लें हिंदी को अपनाएँगे, निज भाषा की उन्नति करके इसका गौरव गाएँगे।
साहित्य सृजन कर हिंदी में इसे समृद्ध बनाएँगे, विश्व व्यापी बना हिंदी को इसकी शान बढ़ाएँगे।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर