कविता
“शब्द”
शब्दों
के जैसा
शक्तिहीन
शायद कोई नहीं
जो अपने आप को इस्तेमाल
होने से बचा नहीं पाते।
कोई भी,कभी भी कहीं भी
आवेग में
आवेश में
क्लेश में
स्वदेश में
विदेश में
अपने ज़रूरत
के मुताबिक खुद को शक्तिशाली ,
कमजोर,चालाक, होशियार
शरीफ़ ,भद्र या बदमाश
साबित कर लेते हैं
उनका
इस्तेमाल
करके
-अजय प्रसाद