सावन ही जाने
कविता
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ननद के बहाने
सासू के ताने
विरहन की पीर
कोई क्या जाने ।
बाबुल का आंगन
मन भाए सावन
माता की प्रीत
मिलें वहीं जाने ।
बाग में झूले
मन मेरा डोले
मेघों का गर्जन
आ गये रुलाने ।
जियरा की जलन
घुंघट में घुटन
विरहन की आंच
जले वो जाने ।
दिल जागी लगन
कब आये साजन
मिलें दो अखियां
सावन ही जाने ।
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रचनाकार – शेख जाफर खान