कविता
माँ बचपन की लोरी है,माँ दुनिया में सबसे भोली है,
माँ गंगा सी पावन है,माँ निर्मल जल की एक धारा है।।
माँ कभी धूप सी लगती है, कभी छाँव सी लगती है,
माँ संघर्षो के बीच डगर में दिखता कोई किनारा है।।
माँ दुर्गा की शक्ति है,माँ अपनेपन की अभिव्यक्ति है,
माँ वो सर्वस्व शब्द है जिसका ना कोई वारा न्यारा है।।
माँ मेरे मन का इक कोना है,माँ मेरी हीरा,पन्ना,सोना है,
बस इक माँ के होने से लगता है कि संसार हमारा है।।
माँ सम्पूर्ण समर्पण है,माँ त्याग औ ममता का दर्पण है,
माँ का जाया ये जीवन अनुपम,सुन्दर और प्यारा है।।
माँ मन्दिर है दर्शन है, पूजा भजन और संकीर्तन है,
माँ के एक परिभाषा में सिमटता ये ब्रह्मांड सारा है।।