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10 Aug 2018 · 1 min read

#कविता

तू इश्क में मिटा न सीमा पार ही गया,
नायब ज़िन्दगी यूँ बेकार ही गया,
मिटटी का घर बिखरना था, आखिर बिखर गया,
अच्छा हुआ कि ज़ेहन से आंधी का डर गया,
बेहतर था कैद से ये बिखर जाना इसलिए
ख़ुश्बू की तरह से मैं फिजा में बिखर गया,
अपनी शायरी में जिसे ढूंढते हो तुम,
जाने वो धूप छाँव का मंज़र किधर गया,
सुखी पड़ी है रेत-सी जिंदगी तेरी,
तेरी मोहब्बत का समंदर किधर गया।

Language: Hindi
462 Views

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