कविता
मन तो नादान परिंदा है,
ख्वाहिशें इसकी, कभी खत्म नहीं होती
उल्फ़त बहुत हैं राहों में, तू कभी ये न कहना
हसरतों की जुस्तजू,हर वक़्त पूरी नहीं होती
कभी यादें हो तो एहसास नहीं होतें
कभी हम तो कभी तुम साथ नहीं होतें
अब तो तरस गए,हम भी तेरी आवाज को
जज्बात भी अब, खामोशी से नहीं जाते
पर,समझौता भी जरूरी था,वक्त के फैसलो संग
हर नाव रिश्तों की,समंदर पार नहीं लाते।
रेखा “कमलेश ”
होशंगाबाद मप्र