कविता
नारी
——
जैसे होठों पर जिसके लाली लगी हो ,
माथे पर जिसके लाल बिन्दी सजी हो ।
जैसे ईंगुर से माँग जिसकी भरी हो ,
जैस पैरों में जिसके महावर लगी हो ।
जैसे चिरयौवना कोई सुन्दरी हो ,
जैसे दुल्हन की तरह कोई सजी हो ।
जैसे अपने पिया की प्यारी वही हो
ऐसी चिरयौवना के उपर पर्दा पड़ा हो
उसके ऊपर धूल मिट्टी जमा हो
रूप उसका नहीं दिखाई दे रहा हो
स्वर करुणा का न किसी को सुनाई दे रहा हो
जो सभी के अत्याचार सह रही हो
जो सभी से अपनी व्यथा सी कह रही हो
अपनों के द्वारा जो हो उपेक्षित
गैरों के द्वारा जो हो परीक्षित
बेसहारा हो जो सर्व समर्थ होकर भी
जिन्दा हो जो असमर्थ होकर भी
जो दिव्य गुणों को किए हो समाहित
जीतकर भी जो हो गयी हो पराजित
जिसके कारण ही सारा संसार चलता
जिसके कारण असहाय मानव भी पलता
जो असम्भव को भी कर देती सम्भव
जिसके बिना नहीं जी सकता मानव
जो देती मानव को भी कुशलता
प्रत्येक बस्तु की जो करती सुलभता
जिसके बिना न राष्ट्र कर सकता उन्नति
जिसके बिना सब करते अपनी क्षति
ऐसी नारी का करना चाहिए सम्मान
उसकी हर बात का रखना चाहिए मान ।।
:- डाँ तेज स्वरूप भारद्वाज -: