आओ अब यशोदा के नन्द
[आओ अब यशोदा के नन्द ]
पूरब की धरा में पल्लवित ,
पश्चिम का पनपा ये कन्द ।
नगरों से गाँव तक पसरा ,
मान -मर्यादा कर रहा मन्द ।
प्राचीन प्रथा बिसरा रहा ,
कागा हो रहा अब सदानन्द ।
अलसाई न्याय की माता ,
पिसते रहे मजलूम वृन्द ।
चहुँ दिश छाएँ घूस मेघ ,
वरुण देव बँटवा रहे रिन्द ।
जलता नहीं गरीब का चुल्हा,
सगा नहीं अपना फरजन्द़ ।
कुँवारी बेटी घर बैठी ,
बिन दहेज के न मिलता कन्त ।
मंहगाई सुरसा हो रही,
दूजे हड़ताल और बन्द ।
चीर हरण शहर चौराहा ,
आओ अब यशोदा के नन्द ।
————————————
शेख जाफर खान