कविता
रात के कदमों में झाँझर मत बाँधना
दबे पांव आने दो
नींद में जो खोए हैं ना ख्वाब मेरे
रूनझुन से उनकी कहीं जाग ना जाएं
मन अवचेतन संजो रहा है उम्मीदें कई
खोने दो….खूब पिरोने दो, नव प्राण जीवन में…
हसरतें उठाकर पलकें
कल देखेंगी उजले सवेरे
धीरज धर, भोर की पहली किरण से…
छट जाएंगे बादल घनेरे।
निधि भार्गव