कविता 10 🌸माँ की छवि 🌸
10 *मातृ दिवस पर कविता *
==============
( -महिमा शुक्ला -इंदौर।)
🌸 माँ की छवि ‘🌸
====================
🌸 —माँ –🌸
==========
क्या कोई दिन भी माँ के नाम होता है ?
यूँ कहें माँ के नाम ही हर दिन होता है,
जिसने पाला – पोसा बड़ा किया हो
जिसने पहला कौर और बोल दिया हो.
अटकन बटकन चटकन का बचपन
सिख लिया माँ से पहले पहल अक्षर ज्ञान
खेल खेल में जब गिरते- पड़ते -लड़ते
बचपने की हर गलती पर डपटा हो जिसने
मेल मिलाप की समझाइश पायी उनसे,
जीवन का पहला सबक मिला है उनसे
फिर धीरज से सहला जीवन मंत्र भी फूंका हो
कैसे जीना कैसे सीना अपनी हर उलझन को
कभी कह कर कभी इशारे से भी समझाया
जाने -अनजाने वह भी सीखा जो रहा अनकहा
कौन सा दिन होगा जब याद नहीं आयें वे
अपनी सबसे अच्छी पहली दोस्त सी माँ को ?
वह तो रची -बसी मन अंतर रक्त और मज्जा में
कैसे कोई भूले जन्म की साथी कर्म की संगी को?
माथे पर सजी गोल बड़ी लाल दमकती बिंदी
अंकित है मन में माँ की गौर -तेजस्वी अमिट छवि ।।
===================
स्वरचित –
महिमा शुक्ला
9589024135, इंदौर( म.प्र. )