कविता हैं मन का भाव
कविता है मन का भाव,
भरती है जीवन के घाव,
जब हाेने लगती कांव कांव,
याद आता मुझकाे मेरा गांव,
वाे कहां गयी कागज की नाव,
कहां गये पाेथी पढ़ने वाले राव,
वाे ताऊ जी की मूंछाे का ताव,
बात बात पर स्वीकृति का हाव,
चलते चलते राह में थकते पांव,
नैना ढूंढे इधर उधर तरु की छांव,
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।।जेपीएल।।