कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
अनवरत यात्रा सी
इक पथिक के
गुनगुनाते ख्वाबों की प्यास सी
इतिहास के फ़लक पर
नेह संस्कृति का धनक सजा दो
कविता हर पल का साक्ष्य बनो तुम
सवालों के कटघरे में
सच शर्मसार हो सर झुका ले
जब हर शातिर झूठ उसे हराने को
हो कटिबद्ध
तुम अड़ियल झगड़ालू ज़िद बन अड़ जाना
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम
ध्रुवों पर पिघलते
ग्लेशियर्स का दर्द
कटते अरण्य ,वनों से
आश्रयहीन हुए बाघ,
आदिवासियों की बेबस बेकसी से
खड़ा कर दो चक्रवात
साहस की इक मिसाल रचो
कविता हर पल की साक्ष्य बनो तुम