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15 May 2018 · 1 min read

कविता–हरीभरी हो धरा

“रोला छंद”–परिभाषा एवं कविता
—————————————-
रोला एक सममात्रिक छंद है;इसमें चार चरण होते हैं;प्रत्येक चरण में चौबीस-चौबीस मात्राएँ होती हैं।हर चरण में यति ग्यारह-तेरह मात्राओं पर होती है और हर चरण के अंत में दो गुरू या एक गुरू दो लघु या दो लघु एक गुरू मात्राएँ आनी आवश्यक हैं।

#रोला

बन गलवन की शान,इरादे चीनी तोड़े।
समझ गया ये चीन,नहीं अटकाने रोड़े।
सुन प्रीतम की बात,दूर हिम्मत से आफ़त।
हर संकट ले जीत,आत्मनिर्भर बन भारत।

#आर.एस.”प्रीतम”

Language: Hindi
238 Views
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