कविता: सजना है साजन के लिए
कविता: सजना है साजन के लिए
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आज सुबह जब ऑंख खोली,
चुपके से आकर वो मुझसे बोली।
क्या मेरे साथ चलोगे?
मैंने पूछा कहां?
वह बोली-
समुंदर के किनारे,
लहरों के फब्बारे।
मखमल सी रेत में,
कुदरत के खेत मे।।
मैंने जवाब दिया-
हाँ हाँ मैं जाऊंगा,
तेरे साथ बैठूंगा।
और दौड़ लगाऊंगा।
थकोगी जब कभी,
गोद में उठाऊंगा।।
पूछेंगी लहरें मुझसे,
उनको बताऊंगा।
तुम से ही मोहब्बत
तुमसे ही प्यार है।।
पूछना न हद मेरी,
बेहद है बेशुमार है।।
अब उसने मुझसे पूछा-
क्या मुझसे बातें करोगे?
मैंने कहा किस रिश्ते से-
वह बोली-
जो लहर का सागर से,
पानी का गागर से।
जो वर्षा का बादल से,
आँखों का काजल से।
जो बन्नी का बलम से,
डायरी का कलम से।
बस इतना ही काफी है,
माफ तुम्हारी गुस्ताख़ी है।
मैंने भी जबाब दिया-
हमारे मिलने से,
हवा सुहानी हो गई,
कुछ मैं दीवाना,
कुछ तू दीवानी हो गयी।
दूर मंजिल है,
पथरीला रास्ता,
छोडूंगा न साथ,
मुझे खुदा का वास्ता।
मिले आज हम,
दरिया के किनारे,
आज से तुम,
हमारे, हम तुम्हारे।
बस मेरी बातों पर,
एतबार करना,
अगर मर भी जाऊं,
तब भी प्यार करना।
फिर अब वह बोली-
क्या मेरे साथ कुछ खाओगे?
मैंने पूछा- क्या?
वह बोली-
चाऊमीन – डोसा,
बर्गर – समोसा।
रोटी-दाल मखनी,
तीखी- तीखी चटनी।।
मैंने जवाब दिया-
हाँ हाँ खाऊंगा,
तुझे भी खिलाऊंगा।
रोटी, दाल- मखनी,
तीखी-तीखी चटनी।
जब तुझे मिर्ची लगेंगी,
दौड़ा-दौड़ा जाऊँगा,
बिसलरी की बोतल से,
ठंडा पानी पिलाऊंगा।।
अंत में उसने पूछा?
क्या मेरे साथ बाजार चलोगे?
मैंने पूछा क्यों?
वह बोली-
हरी हरी चूड़ियां,
मुझको दिलवाना।
चूड़े वाले कंगन,
अपने हाथों से पहनना।
घटा जैसा काजल,
आंखों में लगाना।
मोगरा का ग़ज़रा,
मेरे बालों में सजाना,
मैंने जवाब दिया-
हाँ हाँ चलूंगा,
खर्च करूँगा।।
कानों की बाली,
होंठों की लाली।
हरी हरी चूड़ियां,
मोती की लड़ियां।
आंखों का कज़रा,
मोगरा का ग़ज़रा।
कितना भी महंगा,
सुन्दर सा लहंगा।
ऊँची ऊँची सेंडिल,
सोने का पेंडिल।
चांदी की पैंजनी,
हीरे की नथुनी।
लंबी लंबी चोटी,
फूल सी अंगूठी।
नौलखा हार,
मर्सडीज़ कार,
मनाली या शिमला,
बड़ा सा बंगला,
10-20 -गार्ड,
शॉपिंग वाले कार्ड,
सब कुछ दिलाऊंगा।
दुल्हन बनाऊंगा,
घर तुझे लाऊंगा,
तेरे साथ जाऊंगा।
हनीमून मनाऊंगा
तेरे साथ जाऊंगा।।
तेरे साथ जाऊंगा।।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन