कविता : संगति और जोश
कविता : संगति और जोश
संगति असर करे इतना, बदल ज़िंदगी जाती है।
विजय पराजय की डोर यही, देती और छुड़ाती है।।
भूल बुराई गले लगाना, आफ़त ही बन जाता है।
इसे छोड़ने की हसरत में, जीवन ही लुट जाता है।।
सज्जन दुर्जन पहचानो तुम, आधार यही जीवन का।
चंदन जैसे बन जाओ तुम, विष भी काजल नयनन का।।
मगर परीक्षा आसान नहीं, कैसे कहदूँ मुश्क़िल है।
चीज़ मिलेगी यार यकीनन, जिसपे आया जो दिल है।।
डर को जीतो पहले ‘प्रीतम’, गगन भरो तुम आँखों में।
पेड़ हरा फल छाया देता, दम है जिसकी साखों में।।
क़दम तुम्हारे चलते जाएँ, मंज़िल ख़ुद ललचाएगी।
प्रेम-कली खिलकर एक दिवस, गुल बन बू बिखराएगी।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#मौलिक रचना