कविता शीर्षक – सेवानिवृति — लेखक राठौड़ श्रावण आदिलाबाद
हाम क्षीक्षा विभाग के कर्मी
मेहनत और ईमान के धर्मी !२!
देते तुमको आज बिदाई ।
सुख संपन रहो मेरे भाई !१!
कई दसक हाम सात रहे हैं
दु:ख हिन सुख सात सहे है।
दु:ख कि दुप जलति कैसे
बरगत जैसी चाँओँ जो पाई
सुख संपन रहो मेरे भाई ।
दौर सुनेरा नहीं गया है
नया सवेरा आज हुआ है
जो कुछ वस्ताओ में झुठा
वह पाने की रुतु है आई
सुख संपन रहो मेरे भाई
दुनिया दारी खुब निबओं
और घरमे से खर्चा पाऔ
पात पुराने हुते तो क़या है
नई पहल तो तुमसे आई
सुख संपन रहो मेरा भाई
—————- लेखक राठौड़ श्रावण हिंदी प्रध्यापक साशकिय कनिष्ठ माहाविध्यालय इंद्रवेल्लि आदिलाबाद तेलंगाणा