कविता शीर्षक बेटी तू तो है गंगाजल
बेटी तू तो है गंगाजल का बहता हुआ तेज प्रवाह
तू जीवन में तो जिंदगी का आसान होगा निर्वाह
तू मेरे सुने जीवन की धड़कन तुझसे उमंगे हजार
तुझमें नजर आती माँ के आँचल की शीतल छांह
इस धुप से जलते जीवन में ह्रदय विदारक क्रंदन
तुझको पाकर मिल गई मुझे अब खुशियो की थाह
जिंदगी की फिज़ा में तेरे अश्को के मोती समेट लूँ
बदकिस्मती से भी ना निकले बेटी,तेरे मुंह से आह
गम की घटाओं से तुझको छुपाकर रखूंगा अब मैं
तेरे बिना बेटी इस दीप का ,जीवन भी देगा कराह
जुस्तजू इतनी की तुझ पर रखूँ मैं पलकों की छाँव
तेरी उड़ान हो बेटी कल्पना से ऊँची ,है इतनी चाह