कविता-शिश्कियाँ बेचैनियां अब सही जाती नहीं
शिश्कियाँ,बेचैनियां,अब सही जातीं नहीं..
काली सी दुनिया ,मन भी हैं काले
काली सी रातें ये काले से सपने,
धुंवा सा है फैला क्या पूरे शहर में।
चुन लाओ कोई
वो प्यारे से नग्मे,
वो सोने की चिड़िया
वो सुनहरा सवेरा..
लौट आओ फिर से
तुम अपने जहाँ में,
पुकारे तुम्हे
ये गुलिशता तुम्हारा
कहाँ खो गया,हिन्दोस्तां हमारा ।
अब नहीं तो कब करोगे
डर रहे,कब तक डरोगे
देखते ही देखते,
सबकुछ ख़त्म हो जायेगा
अब संभल भी, जा तू बन्दे
जीते जी मर जायेगा
शिश्कियां,बेचैनियां
अब सही जाती नहीं,
गुस्ताखियां,बर्बादियां
अब सही जाती नहीं
हम फिर से जगमग चाँद बने
फिर रोशन नया सवेरा हो,
आशाओं और उम्मीदों का
फिर से यहाँ बसेरा हो..