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19 Jan 2022 · 1 min read

कविता ~शरद-ऋतु

घटने लगा तेज भानू का,
वसुधा के ताप में कमी हूई।
लगी सिहरने अब धरती माँ,
आँचल में उसके नमी हूई।।

कन्द, मूल,फूल ,पत्ती को,
बलिदान का अब आभास हुआ।
लगने लगी साँस थोड़ी सी,
नव जीवन का प्रकाश हुआ।।

ओढ़ शुभ्र परिधान धरा ने,
जब अलसाई सी,आँखें खोली।
अब और सही ना जाये ठिठुरन,
आदित्य देव से यों बोली।।

सुने वचन दिनकर ने महि के,
किरणों का फिर बौछार किया।
कहाँ गया,तेज किरणों का,
ये सोच, सोच लाचार हुआ

✍ शायर देव मेहरानियाँ
अलवर, राजस्थान
(शायर, कवि व गीतकार)
slmehraniya@gmail.com

Language: Hindi
1 Like · 943 Views
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