(कविता) यादों की पोटल
सुबह सुबह एक ख्वाब था आया
देकर कुछ संदेश गया
कुछ खट्टी सी कुछ मीठी सी
यादों की पोटल छोड़ गया ।।
आँख खुली तो खोली पोटल
कितने ताने बाने थे
गुड़ की ढेली जैसी बातें
रस मे भरे तराने थे ।।
सूरज की लाली यूँ लगती
जैसे उनकी सूरत हो
चिड़ियों का यूँ लगा चहकना
जैसे कुछ हँसकर बोला हो ।।
दिन बीता पोटल को ढोते
साँझ हुई तो चाँद दिखा
फिर वो बिंदी काजल झुमका
तारों मे वह सिंगार दिखा ।।
ऎसे ही बिखरी यादों मे
गोते खाते जीते हैं
कुछ न सूझे कलम उठाकर
” गीत ” यूँ ही लिख लेते हैं ।।
गीतेश दुबे ” गीत “