कविता – यहाँ मुर्दे रहते हैं।
हिंदी विकास मंच
बोकारो,झारखंड, भारत
कविता- यहाँ मुर्दे रहते हैं
क्या कहें कैसे कैसे यहाँ लोग रहते हैं।
जैसे बहते हुए पानी में मुर्दे बहते हैं।
गलत को गलत न सही को सही कहने का हिम्म्मत करते हैं।
क्या कहें कैसे कैसे यहाँ लोग रहते हैं।
आपस में करेंगे खूब चुगली,सब जुल्म सह जाते हैं।
जब सामने से कहने की बारी आई तो चुप रहकर खुद को शरीफ़ बताते हैं।
मगर एक बात बता दूं बहाव के साथ तो मुर्दे बहते हैं।
वीर पुरुष हमेशा बहाव के विपरीत रहते हैं।
चल रही जुल्म की आँधी तुम भी न बच पाएगा।
आज उसकी मौत का तमाशा बनाया गया कल तुमारा बनाया जाएगा।।
हम जिनको किनारें मान गए।
वे जाट पात ,ईर्ष्या द्वेश से लिपटे हुए पाए गए।।
ये समाज में भी न जाने कितने तरह के शिष्य और गुरु हुए।
कोई कर्ण,अर्जुन तो कोई एकलव्य हुए।
द्रोणा ने एकलव्य की उँगली कटवाई अर्जुन को महान बनाया। बुद्ध ने उँगकीमाल डाकू बुद्धि देखर इंसान बनाया।।
अब ऐसे भारत में न कोई शहीद होगा।
मानवता होगी शर्मशार अब सिर्फ जिहाद होगा।।
जिसने ये देश को आजाद कराया उनके विचारों को कहना होगा।
अब भी नहीं बोले तो पता नहीं कब तक ये सरकारी जुल्म सहना होगा।।
सुभद्रा के कलम से झाँसी की सुनी हमने कहानी है।
उसी देश में घरेलू वीरांगना अब भी TIK TOCK की दीवानी है।।
उनकी दर्द भरी दास्तां कौन कहेगा ।
कौन नए भारत का इतिहास रचेगा।।
चाहे इंसान विज्ञान में तुम कितनी भी तरक्की कर जाओगे।
फिर भी रोटी GOOGLE से डाउनलोड कर न पाओगे।
जिस तररकी की भूख है तुम्हें
कब तक उसे साथ रख पाओगे
न पि पाओगे पानी इंटरनेट से
न ही खुद की प्यास बुझाओगे।
भले ही तुम तकनीक से रोशनी पैदा कर लोगे।
मगर चाहे कुछ भी कर लो सूरज की धूप नहीं बना पाओगे।
क्या आने वाला पीढ़ी हमें माफ करेगा।
हमने तो सब गवां दी अब उनका क्या बचेगा।।
झूठ बोल कर बन गए जो सत्ताधारी।
वही बन बैठे हैं असली शिकारी।।
न जाने क्या इस देश का होगा।
होगा।
खत्म होगी ईमान सबका नाश होगा।
क्या कहें कैसे कैसे यहाँ लोग रहते हैं।
जैसे बहते हुए पानी में मुर्दे बहते हैं।
गलत को गलत न सही को सही कहने का हिम्म्मत करते हैं।
क्या कहें कैसे कैसे यहाँ लोग रहते हैं।*
राज वीर शर्मा
संस्थापक सह अध्यक्ष-हिंदी विकास मंच