कविता- “मैं हूँ नारी” – कवि शिवम् सिंह सिसौदिया “अश्रु”
कविता- “मैं हूँ नारी”
यत्न से जिसको जलाया
पँक्ति को देना है दीपक,
दान करके तजनी होगी
ज़िन्दगी की सभी रौनक,
त्यागने मुझको पड़ेंगे
स्वप्न जीवन के सलोने,
त्यागने मुझको पड़ेंगे
मेरे भाई, मेरी बहनें,
छोड़ गुड़िया और किताबें
पहनने मुझको हैं गहने,
मेरी माँ और पिता को भी
कामना भी मन की सारी,
मैं हूँ नारी, मैं हूँ नारी, मैं हूँ नारी, मैं हूँ नारी !
जिनकी अँगुली पकड़ चलकर
गिर सँभलकर चलना सीखी,
उनको भी तजना पड़ेगा
जिनकी सूरत रोज़ देखी,
त्यागना मुझको पड़ेगा
अँगना वो जिसमें मैं खेली,
त्यागनी मुझको पड़ेगी
मेरी प्यारी सी सहेली,
हृदय पर पाषाण रखकर
त्याग दूँगी अपनी देहली,
हृदय पर पाषाण रखकर
त्याग दूँ इच्छाएँ सारी
मैं हूँ नारी, मैं हूँ नारी, मैं हूँ नारी, मैं हूँ नारी !
शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519