कविता मुक्त छंद र्शीर्षक # माँ
एक दिन माँ ने
मुझसे कहा था
जब तुम माँ बनोगी
तब तुमको पता चलेगा
सुनकर,उस दिन मैं
जोर से हँसी थी
और बोली भी थी
हां!मैं भी माँ बनूंगी
माँ बनना कौन सी
बडी बात है
तुम देखना
मैं कैसे अपनी
बेटी को रखूंगीं,और
माँ तुम मुस्काई थी
फिर मैने कहा था
तुम तो हर बात पर
मुझे टोका करती हो
कल ही तो बाल
धोये थे,आज फिर!
रात नहीं, शाम से पहले
सब याद है मुझे
आज तुम्हारा मुस्कुराना
समझ आता है माँ
तुम तो उसी दिन
समझ इई थी,पर
मैं,आज समझी हूं माँ
सच माँ!जब मैं
माँ बनी,तब ही
मुझे पता चला
स्वरचित डॉ. विभा रजंन(कनक)