कविता: माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
प्रेरणादायक कविता: माँ मुझको किताब मंगा दो।
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माँ मुझको किताब मंगा दो,
मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
सीख सीख कर सारी बातें,
तुमको भी बतलाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
पांच जन्मदिन बीत गए हैं,
अब स्कूल जाना है.
पढ़ लिखकर बनूँगा अफसर
ऐसा मैंने ठाना है.
बैठके ऊंची कुर्सी पर,
मैं भी हुकुम चलाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
गणवेश का कपडा लाना,
अच्छे दर्जी से सिलवाना।
जूते मोज़े और स्वेटर,
अपने हाथों से पहनाना।
पहनकर कोट सबसे ऊपर,
मैं भी टाई लगाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
बस्ता लाओ अच्छा सुंदर,
छपा हो जिसपे भालू बंदर।
रबर पेन्सिल और किताबें,
मम्मी रखना उसके अंदर।
रोटी सब्जी और आचार,
मैं मिल बाँटकर खाऊंगा।।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
पढ़ लिखकर हम बने महान
पूरा हो सर्व शिक्षा अभियान,
माता पिता और गुरुजन का,
बढ़ जाये देश का मान,
पढ़े भारत बढे भारत,
मैं ये बीड़ा उठाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन