कविता : भरोसा क्या है?
कविता : भरोसा क्या है?
जीने का एक सहारा है, लगता जग उजियारा है।
करो भरोसा ख़ुद पर पहले, फिर नजदीक किनारा है।।
हार नहीं मानोगे जब तक, हासिल सब कर पाओगे।
कृपा नेक मालिक की होगी, जब तक क़दम बढ़ाओगे।।
कभी टूटना मत ठोकर से, शिक्षा लेते चलना है।
लगे आग का दरिया जीवन, पार इसे हँस करना है।।
स्वयं भरोसा प्रतिपल तुझको, आनंदित कर पाएगा।
देकर उर्जा नव जीवन की, सुन! विजय श्री दिलाएगा।।
मन की उज्ज्वल शक्ति भरोसा, साहस जोश यही भरता।
बंधन हर ये मज़बूत करे, ऊँची सोच यही करता।।
कार्य इसी से सब हल होते, मीठे इसके फल होते।
हृदय बसाकर इसको चलते, कभी नहीं निष्फल होते।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना