कविता- बरसात में बहुत याद आता है
कविता- “बरसात में बहुत याद आता है”
वो भींगते हुए बरसात में,
घर बापिस आना।
और घर आते ही
बरसात का रुक जाना।।
और फिर
मम्मी- पापा से डांट खाना।
थोड़ी देर वहीं रुक जाते?
पानी रुक जाता तब आते।
बरसात में बहुत याद आता है।।
वो बरसात के कीचड़ में
चप्पल का टूट जाना।
फिर नंगे पांव घर आना।
छतरी लगाने पर भी
आधा भींग जाना।
बहुत याद आता है।।
रिमझिम फुहारों में
नाचते, झूमते हुए
आंगन में नहाना।
बहुत याद आता है।।
पहली बारिश में
मिट्टी की सोंधी महक
चिड़ियों का चहकना
गलियों में बच्चों का फुदकना
बहुत याद आता है।।
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कवि- राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक- “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष-म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष-वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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