( कविता ) बचपन की यादें
वो बचपन की यादें, बड़ी ही सुहानी
बहुत याद आते वो किस्से कहानी ।
वो गुल्ली, वो डंडा, वो कंचों का खेला
मुहल्ले मे लगता था, बच्चों का मेला
अब यादों मे ही रह गईं वो निशानी
वो बचपन की….
कभी चोर बनते, कभी हम सिपाही
कभी फेंकते एक दूजे पे स्याही
कितनी हसीं तब ये थी जिंदगानी
वो बचपन की…
पतंगें उडा़ना, वो मेले मे जाना
वो बागों से फूलों फलों को चुराना
बहुत लाड़ करते थे नाना ऒर नानी ।।
वो बचपन की..
गीतेश दुबे ” गीत “