कविता पढने आया हूँ
सच तो सच ही होता है मैं ये बतलाने आया हूँ
धूल हटा करके सबको दर्पण दिखलाने आया हूँ।
न सोचना कि गुणगान किसी का बस करने आया हूँ
कवि हूँ कविता लिखता हूँ बस कविता पढने आया हूँ।
झूठी प्रशंसा करना कविता का तो काम नहीं
शासक को सच न दिखाए उसका जग मे नाम नही।
अच्छा यदि वो काम करे तो बढाई उसकी बनती है
जनता भी उससे खुश रहती दिल मे उसको रखती है।
निष्पक्ष होती है कलम यही समझाने आया हूँ—–
कविता में है शक्ति होती मिले उसे स्थान ये जरूरी है
मंच का भी हो सम्मान ऐसी क्या मजबूरी है।
आदिकवि को है प्रणाम और है मंच के पहले भी कवि को
प्रणाम उनको भी जिन्होने चमकाया ककविता की छवि को।
चुटकुले ही नहीं उपदेश भी कविता में रखवाने आया हूँ——-
सीधा सादा जीवन मेरा सीधी बातें लिखता हूँ
राष्ट्र और समाज सेवा में जीवन अर्पित करता हूं।
वीर रस और श्रंगार रस की रहती कोशिश मेरी है
बात निकले तो मर्म हो कुछ न कोई हेराफेरी है।
हिंदी कविता से हिंदुस्तान की पहचान बताने आया हूँ——-
अशोक छाबडा