कविता- नैना
?️ नैना ?️
✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’
सुंदर और सजीले नैना
नट-खट और हटीले नैना
करें शिकार शिकारी बन के
छल-बल छैल छबीले नैना
सुरा-सुंदरी से भी बढ़कर
है मदमस्त नशीले नैना
लाजवंती सी लाज है इनमें
छुई-मुई से शर्मीले नैना
नव-रस फीके जिसके आगे
रस-रस रसिक रसीले नैना
इंद्रधनुष के रंग सब फीके
प्रिय रॅंग रंगे रंगीले नैना
पलक पावडे बिछा रखे हैं
प्रेम-पगे पथरीले नैना
एक झलक की कीमत जीवन
हैं भारी खर्चीले नैना।
शस्त्र त्याग कर भागे शत्रु
देख-देख जोशीले नैना
चकाचौंध फीकी बिजली की
जब-चमके चमकीले नैना
तड़ित-प्रभा सम कौंध रहे हैं
दम-दम दमक दमीले नैना।
विरह वेदना में झरते जब
झर-झर आसूं गीले नैना
✍अरविंद राजपूत ‘कल्प’