कविता-निज दर्शन
जल चन्दन अक्षत पुष्प को ले,
अक्षय पद को पा न सके है,
दीप, धुप, फल अर्घ्य भी ले,
अनर्घ्य महल में जा न सके है,
लाख बार नरभव को पा,
भव भ्रमण जाल विघटा न सके है,
कमी कहाँ रह गई प्रभो,
अब तक हम न जान सके है,
जिन दर्शन कई बार किया,
पर निज का दर्शन पा न सके है ।।