“कविता नहीं आवाज हूँ,मैं एक नई कहानी,सुनाता हूँ,मैं”-ऋषि के.सी.
एक नई कहानी ,सुनाता हूँ मैं,
एक नई कहानी,सुनाता हूँ मैं,
रहता वो डूबते सागर में ,
एक नई………………..मैं ।
चिड़िया-सी कहानी है उसकी ,
उड़ता वो-फिरता जीवन की ,तालाश में,
एक नई……………….मैं।
अपने भी थे उसके ,सपने भी थे उसके,
पंखों में उड़न भरी भी उसने ,
रास्ते में चलता भी था और गिरता भी था,
बदनामी को वो चुपचाप सह जाता था ,
परन्तु सबका मान बढ़ाता था ,
एक नई………………………मैं ।
अपना खुदा भी था और उससे जुदा भी था ,
कहने से वो कतराता भी था,
और हृदय में उसको बसाता भी था,
आज भी कहानियों में ,उसको ढूंढता भी था ,
किस्मत का संदेश,मानता भी था वो उसको,
अंत में सीखा गई ,दोस्ताना उसको,
रह गई आखिरी ख़्वाइश,कहने को उसको ,
याद करता रहेगा, जीवन के पथ पर उसको ,
नही पसंद करता वो ,अफसाना उसका ,
सिर्फ सपनो में ,ढूंढ़ता था उसको ,
यही जीवन_का_सार ,बताता हूँ मैं ,
एक नई कहानी, सुनाता हूँ मैं ,
एक नई कहानी ,सुनाता हूँ मैं ।
-ऋषि के.सी.